ऋग्वेद (मंडल 10)
तां पू॑षञ्छि॒वत॑मा॒मेर॑यस्व॒ यस्यां॒ बीजं॑ मनु॒ष्या॒३॒॑ वप॑न्ति । या न॑ ऊ॒रू उ॑श॒ती वि॒श्रया॑ते॒ यस्या॑मु॒शन्तः॑ प्र॒हरा॑म॒ शेप॑म् ॥ (३७)
हे पूषा! मनुष्य जिस नारी के गर्भ में बीज बोते हैं, उसे तुम अतिशय कल्याणी बनाकर भेजो. यह हमारी जंघाओं की कामना करती हुई अपनी जंघाओं को फैलावे एवं हम कामना करते हुए इसकी विस्तृत जंघाओं में अपनी पुरुषेंद्रिय का प्रवेश करावें. (३७)
O God! Send the woman in whose womb the human beings sow the seeds, you make her a very well-being. It wishes for our thighs to spread its thighs and we wish to enter our male senses into its wide thighs. (37)