ऋग्वेद (मंडल 10)
कर्हि॑ स्वि॒त्सा त॑ इन्द्र चे॒त्यास॑द॒घस्य॒ यद्भि॒नदो॒ रक्ष॒ एष॑त् । मि॒त्र॒क्रुवो॒ यच्छस॑ने॒ न गावः॑ पृथि॒व्या आ॒पृग॑मु॒या शय॑न्ते ॥ (१४)
हे इंद्र! तुमने जिस तलवार को फेंककर पापी राक्षसों का छेदन किया था, वह कब फेंकी जाएगी? जिस प्रकार वधशाला में गाएं कटती हैं, उसी प्रकार तुम्हारे इस आयुध से चोट खाकर मित्रों से द्वेष करने वाले राक्षस धरती पर गिरते हैं और सो जाते हैं. (१४)
O Indra! When will the sword you threw and pierced the sinful demons be thrown away? Just as the cows in the slaughterhouse are cut, so the demons who are hurt by this weapon of yours and hate their friends fall on the earth and fall asleep. (14)