हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 10.92.2

मंडल 10 → सूक्त 92 → श्लोक 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 10)

ऋग्वेद: | सूक्त: 92
इ॒मम॑ञ्ज॒स्पामु॒भये॑ अकृण्वत ध॒र्माण॑म॒ग्निं वि॒दथ॑स्य॒ साध॑नम् । अ॒क्तुं न य॒ह्वमु॒षसः॑ पु॒रोहि॑तं॒ तनू॒नपा॑तमरु॒षस्य॑ निंसते ॥ (२)
देव और मानव दोनों ने शक्ति द्वारा रक्षण करने वाले व सबके धारक अग्ने को यज्ञ का साधन बनाया. वायु के पुत्र महान्‌ और पुरोहित अग्नि को उषाएं सूर्य के समान चूमती हैं. (२)
Both God and man made Agne, the protector and the possessor of all by power, a means of yajna. The great son of Vayu and the priest kiss agni like the sun. (2)