हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद (मंडल 2)

ऋग्वेद: | सूक्त: 10
जो॒हूत्रो॑ अ॒ग्निः प्र॑थ॒मः पि॒तेवे॒ळस्प॒दे मनु॑षा॒ यत्समि॑द्धः । श्रियं॒ वसा॑नो अ॒मृतो॒ विचे॑ता मर्मृ॒जेन्यः॑ श्रव॒स्य१॒ः॑ स वा॒जी ॥ (१)
सबसे प्रथम यज्ञ में बुलाने योग्य, पिता के समान, शोभा धारण करने वाले, मरणरहित, विविध प्रज्ञायुक्त, अन्न एवं बल से संयुत एवं सेवा के योग्य अग्नि मनुष्यों द्वारा यज्ञशाला में जलाए गए हैं. (१)
First of all, the agnis that are called in the yajna, like the Father, those who adorn, without death, have been armed with various intellects, compatible with food and force and worthy of service have been lit in the yajnashala by human beings. (1)

ऋग्वेद (मंडल 2)

ऋग्वेद: | सूक्त: 10
श्रू॒या अ॒ग्निश्चि॒त्रभा॑नु॒र्हवं॑ मे॒ विश्वा॑भिर्गी॒र्भिर॒मृतो॒ विचे॑ताः । श्या॒वा रथं॑ वहतो॒ रोहि॑ता वो॒तारु॒षाह॑ चक्रे॒ विभृ॑त्रः ॥ (२)
मरणरहित, विविध प्रजा-युक्त एवं विचित्र-प्रकाश वाले अग्नि मेरी समस्त स्तुतियों सहित पुकार को सुनें. काले अथवा लाल रंग के दो घोड़े अग्नि का रथ खींचते हैं. वे ऋत्विजो द्वारा विभिन्न स्थानों में ले जाए जाते हैं. (२)
Listen to the call, including all my praises, to the dying, the diverse, the diverse, and the strange-light agni. Two horses of black or red color pull the chariot of agni. They are taken to different places by Ritvizo. (2)

ऋग्वेद (मंडल 2)

ऋग्वेद: | सूक्त: 10
उ॒त्ता॒नाया॑मजनय॒न्सुषू॑तं॒ भुव॑द॒ग्निः पु॑रु॒पेशा॑सु॒ गर्भः॑ । शिरि॑णायां चिद॒क्तुना॒ महो॑भि॒रप॑रीवृतो वसति॒ प्रचे॑ताः ॥ (३)
अध्वर्युजनों ने ऊपर मुख वाली अरणि में रहने वाले अग्नि को उत्पन्न किया. अग्नि समस्त वनस्पतियों में विद्यमान हैं. ज्ञानवान्‌ अग्नि रात में महान्‌ तेज से युक्त होकर एवं अंधकार द्वारा अछूते रहकर निवास करते हैं. (३)
The supernumerary produced the agni that lived in the upper facing arny. Fires are present in all vegetation. The gyanavan agni dwells at night with great brightness and untouched by darkness. (3)

ऋग्वेद (मंडल 2)

ऋग्वेद: | सूक्त: 10
जिघ॑र्म्य॒ग्निं ह॒विषा॑ घृ॒तेन॑ प्रतिक्षि॒यन्तं॒ भुव॑नानि॒ विश्वा॑ । पृ॒थुं ति॑र॒श्चा वय॑सा बृ॒हन्तं॒ व्यचि॑ष्ठ॒मन्नै॑ रभ॒सं दृशा॑नम् ॥ (४)
सारे संसार में निवास करने वाले, महान्‌, सब जगह जाने वाले, शरीर से बढ़े हुए, हव्य जन्नों द्वारा व्याप्त, बलवान्‌ एवं दिखाई देने वाले अग्नि की हम घृत रूपी हव्य द्वारा पूजा करते हैं. (४)
We worship the agni that dwells all over the world, the great, the going everywhere, the enlarged body, the evil and visible agni by the human paradises. (4)

ऋग्वेद (मंडल 2)

ऋग्वेद: | सूक्त: 10
आ वि॒श्वतः॑ प्र॒त्यञ्चं॑ जिघर्म्यर॒क्षसा॒ मन॑सा॒ तज्जु॑षेत । मर्य॑श्रीः स्पृह॒यद्व॑र्णो अ॒ग्निर्नाभि॒मृशे॑ त॒न्वा॒३॒॑ जर्भु॑राणः ॥ (५)
सब जगह वर्तमान एवं यज्ञ की ओर आने के इच्छुक अग्नि को हम घी के द्वारा सींचते हैं. अग्नि बाधारहित मन से उसे स्वीकार करें. मनुष्यों द्वारा करने योग्य एवं अतिशय प्रिय वर्ण वाले अग्नि पूरी तरह प्रज्वलित हो जाने पर किसी के द्वारा छुए नहीं जा सकते. (५)
Everywhere, we irrigate the present and the agni that is willing to come towards the yagna with ghee. Accept him with a agni-interrupted mind. Fires with the color that are doable and dear to humans cannot be touched by anyone when it is fully ignited. (5)

ऋग्वेद (मंडल 2)

ऋग्वेद: | सूक्त: 10
ज्ञे॒या भा॒गं स॑हसा॒नो वरे॑ण॒ त्वादू॑तासो मनु॒वद्व॑देम । अनू॑नम॒ग्निं जु॒ह्वा॑ वच॒स्या म॑धु॒पृचं॑ धन॒सा जो॑हवीमि ॥ (६)
हे अग्नि! तुम अपने तेज से शत्रुओं को पराजित करते हुए अपनी स्तुतियों को जानो. हम तुम्हारे दूत बनकर मनु के समान स्तोत्र बोलते हैं. धन प्राप्त करने का इच्छुक मैं ज्वालाओं से पूर्ण एवं कर्मफल से यजमान को युक्त करने वाले अग्नि की स्तुति की कामना से हव्य देता हूं. (६)
O agni! Know your praises by defeating your enemies with your swiftness. We become your messengers and speak the same hymn as Manu. I wish to praise the agni that is full of flames and full of karmaphal with the host. (6)