ऋग्वेद (मंडल 2)
सेमाम॑विड्ढि॒ प्रभृ॑तिं॒ य ईशि॑षे॒ऽया वि॑धेम॒ नव॑या म॒हा गि॒रा । यथा॑ नो मी॒ढ्वान्स्तव॑ते॒ सखा॒ तव॒ बृह॑स्पते॒ सीष॑धः॒ सोत नो॑ म॒तिम् ॥ (१)
हे ब्रह्मणस्पति! तुम इस विश्व के स्वामी हो. तुम हमारी स्तुति को भली प्रकार जानो. इस नवीन एवं विशाल स्तुति के द्वारा हम तुम्हारी सेवा करते हैं. हम तुम्हारे मित्र हैं, इसलिए हमें मनोवांछित फल प्रदान करो तथा हमारी स्तुति को सफल करो. (१)
O Brahmaspati! You are the master of this world. You know our praise very well. We serve you through this new and vast praise. We are your friends, so give us the desired fruit and make our praise a success. (1)