हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 2.25.4

मंडल 2 → सूक्त 25 → श्लोक 4 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 2)

ऋग्वेद: | सूक्त: 25
तस्मा॑ अर्षन्ति दि॒व्या अ॑स॒श्चतः॒ स सत्व॑भिः प्रथ॒मो गोषु॑ गच्छति । अनि॑भृष्टतविषिर्ह॒न्त्योज॑सा॒ यंयं॒ युजं॑ कृणु॒ते ब्रह्म॑ण॒स्पतिः॑ ॥ (४)
स्वर्गीयजल उसके पास न रुकने वाली सरिता के समान आता है, वह सभी सेवकों से पहले गायें प्राप्त करता है एवं अपने अकरणीय बल से शत्रुओं को नष्ट करता है, जिसे ब्रह्मणस्पति मित्र कहकर स्वीकार कर लेते हैं. (४)
The heavenly water comes to him like a sarita who does not stop at him, he receives cows before all the servants and destroys the enemies with his undeserved force, which the Brahmanaspati accepts as a friend. (4)