ऋग्वेद (मंडल 2)
त्वे विश्वा॑ सरस्वति श्रि॒तायूं॑षि दे॒व्याम् । शु॒नहो॑त्रेषु मत्स्व प्र॒जां दे॑वि दिदिड्ढि नः ॥ (१७)
हे तेजस्वी सरस्वती! सब अन्न तुम्हारे आश्रय में है. हे देवी! तुम शुनहोत्र यज्ञों में सोम पीकर प्रसन्न बनो तथा हमें पुत्र दो. (१७)
O stunning Saraswati! All the grain is in your shelter. O Goddess! Be happy to drink som in the Shunhotra yajnas and give us sons. (17)