ऋग्वेद (मंडल 3)
ए॒ता ते॑ अग्ने॒ जनि॑मा॒ सना॑नि॒ प्र पू॒र्व्याय॒ नूत॑नानि वोचम् । म॒हान्ति॒ वृष्णे॒ सव॑ना कृ॒तेमा जन्म॑ञ्जन्म॒न्निहि॑तो जा॒तवे॑दाः ॥ (२०)
हे पुरातन अग्नि! हम तुम्हें लक्ष्य करके सनातन एवं नवीन स्तुतियों को पढ़ते हैं. सब प्राणियों को जानने वाले एवं मनुष्यों के बीच स्थित कामवर्षक अग्नि को लक्ष्य करके हमने ये यज्ञ किए हैं. (२०)
O ancient agni! We target you and read eternal and new praises. We have performed these yajnas by aiming at the workable agni that knows all beings and is among human beings. (20)