ऋग्वेद (मंडल 3)
प्र वा॑मर्चन्त्यु॒क्थिनो॑ नीथा॒विदो॑ जरि॒तारः॑ । इन्द्रा॑ग्नी॒ इष॒ आ वृ॑णे ॥ (५)
हे इंद्र एवं अग्नि! मंत्र जानने वाले होता आदि तथा स्तोत्रों के ज्ञाता स्तोता तुम्हारी अर्चना करते हैं. मैं भी अन्न प्राप्त करने के लिए सभी प्रकार से तुम्हारा वरण करता हूं. (५)
O Indra and Agni! The mantra knower, etc., and the known stothas of the hymns worship you. I also choose you in all respects to get food. (5)