हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 3.14.5

मंडल 3 → सूक्त 14 → श्लोक 5 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 3)

ऋग्वेद: | सूक्त: 14
व॒यं ते॑ अ॒द्य र॑रि॒मा हि काम॑मुत्ता॒नह॑स्ता॒ नम॑सोप॒सद्य॑ । यजि॑ष्ठेन॒ मन॑सा यक्षि दे॒वानस्रे॑धता॒ मन्म॑ना॒ विप्रो॑ अग्ने ॥ (५)
हे अग्नि! ऊपर हाथ उठाकर हम आज पर्याप्त मात्रा में द्रव्य देते हैं. हे मेधावी! हमारी तपस्या से प्रसन्न होकर मन में हमारे यज्ञ की रक्षा करते हुए बहुत से स्तोत्रों द्वारा देवों की पूजा करो. (५)
O agni! By raising our hands up, we give a sufficient amount of liquid today. O meritorious! Be pleased with our penance and worship the gods by many hymns while protecting our yajna in the mind. (5)