हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 3.16.2

मंडल 3 → सूक्त 16 → श्लोक 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 3)

ऋग्वेद: | सूक्त: 16
इ॒मं न॑रो मरुतः सश्चता॒ वृधं॒ यस्मि॒न्रायः॒ शेवृ॑धासः । अ॒भि ये सन्ति॒ पृत॑नासु दू॒ढ्यो॑ वि॒श्वाहा॒ शत्रु॑माद॒भुः ॥ (२)
हे यज्ञकर्म के वेत्ता मरुतो! सौभाग्य बढ़ाने वाले अग्नि की सेवा करो. इसमें सुख बढ़ाने वाले धन हैं. मरुद्गण सेनाओं वाले बड़े युद्धों में शत्रुओं को हराते हैं एवं सदा शत्रुओं का नाश करते हैं. (२)
O maruto, the vetta of yajnakarma! Serve the agni that enhances good fortune. It has wealth that increases happiness. The deserts defeat the enemies in great wars with armies and always destroy the enemies. (2)