ऋग्वेद (मंडल 3)
अ॒यं सो अ॒ग्निर्यस्मि॒न्सोम॒मिन्द्रः॑ सु॒तं द॒धे ज॒ठरे॑ वावशा॒नः । स॒ह॒स्रिणं॒ वाज॒मत्यं॒ न सप्तिं॑ सस॒वान्सन्स्तू॑यसे जातवेदः ॥ (१)
यह वही अग्नि है, जिस में अभिषुत सोमरस को कामना करने वाले इंद्र ने अपने उदर में रखा था. हे जातवेद अग्नि! हजार रूपों वाले अश्व के समान वेगशाली एवं हव्य का सेवन करने वाले तुम्हारी स्तुति सारा संसार करता है. (१)
This is the same agni in which Indra, who wished abhishoot Somras, had kept it in his stomach. O Jativeda Agni! The whole world praises you as fast as a thousand-rupee horse and who consumes the havan. (1)
ऋग्वेद (मंडल 3)
अग्ने॒ यत्ते॑ दि॒वि वर्चः॑ पृथि॒व्यां यदोष॑धीष्व॒प्स्वा य॑जत्र । येना॒न्तरि॑क्षमु॒र्वा॑त॒तन्थ॑ त्वे॒षः स भा॒नुर॑र्ण॒वो नृ॒चक्षाः॑ ॥ (२)
हे यज्ञ के योग्य अग्नि! तुम्हारा जो तेज आकाश, धरती, ओषधियों एवं जल में है, जिस तेज के द्वारा तुमने अंतरिक्ष को विस्तृत किया है, वह तेज आसमान, दीप्तिमान् सागर के समान विस्तृत एवं मनुष्यों के लिए दर्शनीय है. (२)
O agni worthy of yajna! The glory that you have in the sky, the earth, the herbs, and the water, the brightness by which you have expanded the space, is as wide as the bright sky, the deepest sea, and is as visible to man. (2)
ऋग्वेद (मंडल 3)
अग्ने॑ दि॒वो अर्ण॒मच्छा॑ जिगा॒स्यच्छा॑ दे॒वाँ ऊ॑चिषे॒ धिष्ण्या॒ ये । या रो॑च॒ने प॒रस्ता॒त्सूर्य॑स्य॒ याश्चा॒वस्ता॑दुप॒तिष्ठ॑न्त॒ आपः॑ ॥ (३)
हे अग्नि! तुम आकाश में व्याप्त जल को लक्ष्य करके जाते हो एवं प्राण संयुक्त देवों को एकत्र करते हो. सूर्य के ऊपर रोचन नामक लोक में तथा सूर्य के नीचे जो जल वर्तमान हैं, उन्हें तुम्हीं प्रेरणा देते हो. (३)
O agni! You target the water in the sky and gather the lives of the united gods. You inspire the people named Rochan on top of the sun and the water that is present under the sun. (3)
ऋग्वेद (मंडल 3)
पु॒री॒ष्या॑सो अ॒ग्नयः॑ प्राव॒णेभिः॑ स॒जोष॑सः । जु॒षन्तां॑ य॒ज्ञम॒द्रुहो॑ऽनमी॒वा इषो॑ म॒हीः ॥ (४)
बालू मिली हुई अग्नियां खुदाई के काम आने वाले औजारों से मिलकर इस यज्ञ का सेवन करें तथा हमारे प्रति द्रोहरहित होकर हमें रोगरहित महान् अन्न दें. (४)
The sand-found agnis should be used for digging and consume this yajna and give us a great food without disease without being hostile to us. (4)
ऋग्वेद (मंडल 3)
इळा॑मग्ने पुरु॒दंसं॑ स॒निं गोः श॑श्वत्त॒मं हव॑मानाय साध । स्यान्नः॑ सू॒नुस्तन॑यो वि॒जावाग्ने॒ सा ते॑ सुम॒तिर्भू॑त्व॒स्मे ॥ (५)
हे अग्नि! यज्ञ करने वाले मुझ यजमान को सदा अनेक कर्मो की साधन रूप गौ प्रदान करो. हे अग्नि! हमें पुत्र एवं पौत्र प्राप्त हों तथा तुम्हारी फलदायक सुबुद्धि हमारे अनुकूल हो. (५)
O agni! Always give the sacrificial host as a means of many deeds to my host. O agni! May we have sons and grandsons, and may your fruitful wisdom be compatible with us. (5)