हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 3.32.15

मंडल 3 → सूक्त 32 → श्लोक 15 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 3)

ऋग्वेद: | सूक्त: 32
आपू॑र्णो अस्य क॒लशः॒ स्वाहा॒ सेक्ते॑व॒ कोशं॑ सिसिचे॒ पिब॑ध्यै । समु॑ प्रि॒या आव॑वृत्र॒न्मदा॑य प्रदक्षि॒णिद॒भि सोमा॑स॒ इन्द्र॑म् ॥ (१५)
हे इंद्र! तुम्हारा कलश सोम से भर गया है. तुम्हारे सोमरस पीने के लिए 'स्वाहा' शब्द का उच्चारण भी हो चुका है. जैसे पानी भरने वाला पानी भरे हुए पात्र से दूसरे पात्र में जल डालता है, उसी प्रकार मैं तुम्हारे पीने के लिए कलश में सोम भरता हूं. स्वादिष्ट सोम प्रदक्षिणा करता हुआ इंद्र की प्रसन्नता के लिए उनके सामने जाता है. (१५)
O Indra! Your urn is filled with mon. The word 'Swaha' has also been pronounced for your somras to drink. Just as the water filling water pours water from the filled container to another vessel, so I fill the pot with som for you to drink. The delicious Som circumambulation goes before them for Indra's delight. (15)