हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 3.55.17

मंडल 3 → सूक्त 55 → श्लोक 17 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 3)

ऋग्वेद: | सूक्त: 55
यद॒न्यासु॑ वृष॒भो रोर॑वीति॒ सो अ॒न्यस्मि॑न्यू॒थे नि द॑धाति॒ रेतः॑ । स हि क्षपा॑वा॒न्स भगः॒ स राजा॑ म॒हद्दे॒वाना॑मसुर॒त्वमेक॑म् ॥ (१७)
जल बरसाने वाले बादल रूपी इंद्र अन्य दिशाओं में बार-बार गर्जन करते हैं एवं अन्य दिशा में जल की वर्षा करते हैं. वह जल फेंकने वाले, सबके सेवनीय एवं राजा हैं. देवों का प्रमुख बल एक ही है. (१७)
Indra, in the form of a cloud that showers water, roars repeatedly in other directions and rains water in the other direction. He is the water-thrower, the eater of all and the king. The principal force of the gods is the same. (17)