ऋग्वेद (मंडल 3)
दे॒वस्त्वष्टा॑ सवि॒ता वि॒श्वरू॑पः पु॒पोष॑ प्र॒जाः पु॑रु॒धा ज॑जान । इ॒मा च॒ विश्वा॒ भुव॑नान्यस्य म॒हद्दे॒वाना॑मसुर॒त्वमेक॑म् ॥ (१९)
सबके प्रेरक एवं नाना रूप धारी त्वष्टा देव प्रजाओं को अनेक प्रकार से उत्पन्न करते हैं एवं पालते हैं. संपूर्ण भुवन उन्हीं के हैं. देवों का प्रमुख बल एक ही है. (१९)
The inspirational and diverse forms of all, the gods produce and nurture the people in many ways. The whole of Bhuvan belongs to them. The principal force of the gods is the same. (19)