हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 3.59.2

मंडल 3 → सूक्त 59 → श्लोक 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 3)

ऋग्वेद: | सूक्त: 59
प्र स मि॑त्र॒ मर्तो॑ अस्तु॒ प्रय॑स्वा॒न्यस्त॑ आदित्य॒ शिक्ष॑ति व्र॒तेन॑ । न ह॑न्यते॒ न जी॑यते॒ त्वोतो॒ नैन॒मंहो॑ अश्नो॒त्यन्ति॑तो॒ न दू॒रात् ॥ (२)
हे आदित्य देव! जो गाय का घृत लेकर तुम्हें हव्य देता है, वह मनुष्य अन्न का स्वामी बने. तुम जिसकी रक्षा करते हो, उसे न कोई नष्ट कर सकता है और न हरा सकता है. उसे पास से या दूर से पाप भी नहीं छू सकता. (२)
O Aditya Dev! The man who takes the abomination of the cow and gives you the gift, let the man be the master of the food. No one can destroy or defeat what you protect. He cannot even touch sin from near or from a distance. (2)