हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 3.59.4

मंडल 3 → सूक्त 59 → श्लोक 4 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 3)

ऋग्वेद: | सूक्त: 59
अ॒यं मि॒त्रो न॑म॒स्यः॑ सु॒शेवो॒ राजा॑ सुक्ष॒त्रो अ॑जनिष्ट वे॒धाः । तस्य॑ व॒यं सु॑म॒तौ य॒ज्ञिय॒स्यापि॑ भ॒द्रे सौ॑मन॒से स्या॑म ॥ (४)
सबके नमस्कार करने योग्य, सुख से सेव्य, सर्व जगत्‌ के स्वामी, शोभन बलयुक्त एवं सबके विधाता सूर्य उत्पन्न हुए हैं. उन यज्ञपात्र सूर्य की अनुग्रह बुद्धि तथा कल्याण करने वाली मित्रता का हम पावें. (४)
The sun has been born to greet everyone, to be happy, to be the lord of all the world, to be strong and to all. Let us find the grace of those sacrificial suns, wisdom and the friendship of goodness. (4)