ऋग्वेद (मंडल 3)
उ॒रु॒शंसा॑ नमो॒वृधा॑ म॒ह्ना दक्ष॑स्य राजथः । द्राघि॑ष्ठाभिः शुचिव्रता ॥ (१७)
हे पवित्र कर्म वाले मित्र व वरुण! तुम बहुतों द्वारा स्तुत एवं हव्य अन्न से वृद्धि को प्राप्त हो. तुम विशाल स्तुतियों द्वारा धन का महत्त्व पाकर सुशोभित बनो. (१७)
O friend of the holy deeds and Varuna! You are blessed by many and have gained growth from food. Beautify you by the importance of wealth by huge praises. (17)