हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 4.14.5

मंडल 4 → सूक्त 14 → श्लोक 5 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 4)

ऋग्वेद: | सूक्त: 14
अना॑यतो॒ अनि॑बद्धः क॒थायं न्य॑ङ्ङुत्ता॒नोऽव॑ पद्यते॒ न । कया॑ याति स्व॒धया॒ को द॑दर्श दि॒वः स्क॒म्भः समृ॑तः पाति॒ नाक॑म् ॥ (५)
पास में रहने वाले, बंधनरहित एवं ऊर्ध्वमुख-सूर्य को कोई बाधा नहीं पहुंचा सकता. ऊर्ध्वमुख-सूर्य किस शक्ति से चलते हैं? आकाश के खंभे के समान सूर्य स्वर्ग का पालन करते हैं, इसे किसने देखा है? (५)
No one can hinder the sun living nearby, unbonded and upward-facing. With what power does the sun move? The sun like the pillars of the sky follows heaven, who has seen it? (5)