ऋग्वेद (मंडल 4)
अधा॒ यथा॑ नः पि॒तरः॒ परा॑सः प्र॒त्नासो॑ अग्न ऋ॒तमा॑शुषा॒णाः । शुचीद॑य॒न्दीधि॑तिमुक्थ॒शासः॒ क्षामा॑ भि॒न्दन्तो॑ अरु॒णीरप॑ व्रन् ॥ (१६)
हे अग्नि! हमारे श्रेष्ठ, पुरातन एवं सच्चे यज्ञ के करने में संलग्न पूर्वजों ने तेजस्वी स्थान तथा दीप्ति प्राप्त की थी, उक्थमंत्र बोलकर अंधकार को नष्ट किया था तथा पणियों द्वारा चुराई गई लाल रंग वाली गायों को बाहर निकाला था. (१६)
O agni! Our ancestors engaged in performing the best, ancient and true yajna had attained a bright place and a deepness, destroyed the darkness by speaking the ukthamantra and pulled out the red-coloured cows stolen by the pangs. (16)