ऋग्वेद (मंडल 4)
गोमा॑ँ अ॒ग्नेऽवि॑माँ अ॒श्वी य॒ज्ञो नृ॒वत्स॑खा॒ सद॒मिद॑प्रमृ॒ष्यः । इळा॑वाँ ए॒षो अ॑सुर प्र॒जावा॑न्दी॒र्घो र॒यिः पृ॑थुबु॒ध्नः स॒भावा॑न् ॥ (५)
हे शक्तिशाली अग्नि! हमारा यह यज्ञ गाय, भेड़ एवं घोड़ों से युक्त हो. अध्वर्यु एवं यजमान वाला यज्ञ सदैव नष्ट न करने योग्य, हव्य अन्न से युक्त, पुत्र-पौत्र आदि सहित, लगातार चलने वाला, धनपूर्ण, अनेक संपत्तियों का कारण तथा उपदेशकर्तताओं से भरा हो. (५)
O mighty agni! Let this sacrifice of ours consist of cows, sheep and horses. The yajna with adhwaryu and host is always unsustainable, full of food, with son and grandson, etc., that is continuous, rich, the cause of many assets and full of preachers. (5)