हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 4.53.3

मंडल 4 → सूक्त 53 → श्लोक 3 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 4)

ऋग्वेद: | सूक्त: 53
आप्रा॒ रजां॑सि दि॒व्यानि॒ पार्थि॑वा॒ श्लोकं॑ दे॒वः कृ॑णुते॒ स्वाय॒ धर्म॑णे । प्र बा॒हू अ॑स्राक्सवि॒ता सवी॑मनि निवे॒शय॑न्प्रसु॒वन्न॒क्तुभि॒र्जग॑त् ॥ (३)
सविता देव अपने तेज द्वारा पृथ्वीलोक एवं स्वर्गलोक को पूर्ण करते हुए अपने धारण कर्म की प्रशंसा करते हैं. वे अनुज्ञा रूप में भुजाएं फैलाते हैं एवं अपने प्रकाश से प्रतिदिन जगत्‌ को अपने काम में लगाते है. (३)
Savita Dev praises her holding karma by completing the earthloka and the heavenly place with her brightness. They spread out their arms in the form of permission and apply the world to their work every day with their light. (3)