हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 5.14.2

मंडल 5 → सूक्त 14 → श्लोक 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 5)

ऋग्वेद: | सूक्त: 14
तम॑ध्व॒रेष्वी॑ळते दे॒वं मर्ता॒ अम॑र्त्यम् । यजि॑ष्ठं॒ मानु॑षे॒ जने॑ ॥ (२)
मनुष्य यज्ञों में उस दीप्तिसंपन्न, मरणरहित एवं मानव प्रजाओं में अतिशय यज्ञपात्र अग्नि की स्तुति करते हैं. (२)
Human beings praise the glorious, the deadless and the very sacrificial agni in human beings in the yagnas. (2)