ऋग्वेद (मंडल 5)
आ श्वै॑त्रे॒यस्य॑ ज॒न्तवो॑ द्यु॒मद्व॑र्धन्त कृ॒ष्टयः॑ । नि॒ष्कग्री॑वो बृ॒हदु॑क्थ ए॒ना मध्वा॒ न वा॑ज॒युः ॥ (३)
गले में सुवर्णालंकार धारण करने वाले, महान् स्तोत्र बोलने वाले एवं अन्न के अभिलाषी संसारी लोग स्तुतियों द्वारा अंतरिक्षवर्ती विद्युत्-अग्नि की शक्ति बढ़ाते हैं. (३)
Worldly people who wear a golden lamp in their necks, speak great hymns and desire food enhance the power of the space-powered electric agni by praises. (3)