हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 5.2.10

मंडल 5 → सूक्त 2 → श्लोक 10 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 5)

ऋग्वेद: | सूक्त: 2
उ॒त स्वा॒नासो॑ दि॒वि ष॑न्त्व॒ग्नेस्ति॒ग्मायु॑धा॒ रक्ष॑से॒ हन्त॒वा उ॑ । मदे॑ चिदस्य॒ प्र रु॑जन्ति॒ भामा॒ न व॑रन्ते परि॒बाधो॒ अदे॑वीः ॥ (१०)
शब्द करने वाली अग्नि की ज्वालाएं तीखे आयुधों के समान राक्षसों को नष्ट करने के लिए स्वर्ग में उत्पन्न होती हैं. हर्षित होने पर अग्ने का प्रकाश राक्षसों को पीड़ा देता है. बाधा पहुंचाने वाली असुर-सेना अग्नि को नहीं रोक पाती. (१०)
The flames of agni that do the word arise in heaven to destroy demons like sharp ordnances. The light of agne when joyful gives torment to the demons. The asura-army that obstructs cannot stop the agni. (10)