हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 5.2.3

मंडल 5 → सूक्त 2 → श्लोक 3 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 5)

ऋग्वेद: | सूक्त: 2
हिर॑ण्यदन्तं॒ शुचि॑वर्णमा॒रात्क्षेत्रा॑दपश्य॒मायु॑धा॒ मिमा॑नम् । द॒दा॒नो अ॑स्मा अ॒मृतं॑ वि॒पृक्व॒त्किं माम॑नि॒न्द्राः कृ॑णवन्ननु॒क्थाः ॥ (३)
हमने सुनहरी ज्वालारूपी दांतों वाले, उज्ज्वल-वर्ण एवं आयुधों के समान ज्वालाएं बनाने वाले अग्नि को देखा. हमने अग्नि की अविनाशी एवं सर्वव्यापिनी स्तुति की है. इंद्र के विरोधी एवं स्तुति न करने वाले हमारा क्या कर सकते हैं? (३)
We saw the agni with golden flame-like teeth, bright-colored and uterine-like flames. We have praised the indestructible and omnipresent of agni. What can Indra's opponents and those who do not praise us do? (3)