ऋग्वेद (मंडल 5)
यस्त्वा॑ हृ॒दा की॒रिणा॒ मन्य॑मा॒नोऽम॑र्त्यं॒ मर्त्यो॒ जोह॑वीमि । जात॑वेदो॒ यशो॑ अ॒स्मासु॑ धेहि प्र॒जाभि॑रग्ने अमृत॒त्वम॑श्याम् ॥ (१०)
हे अग्नि! हम मरणशील लोग स्तुतिपूर्ण मन से तुम मरणरहित की स्तुति करते हुए तुम्हें बार-बार बुलाते हैं. हे जातवेद! हमें संतान दो, जिसके अविच्छेद के कारण हम मरणरहित बन सकें. (१०)
O agni! We mortals call you again and again with a praiseful heart, praising you without dying. O Jathaveda! Give us children, because of whose infidelity we can become deathless. (10)