ऋग्वेद (मंडल 5)
प्र सू म॒हे सु॑शर॒णाय॑ मे॒धां गिरं॑ भरे॒ नव्य॑सीं॒ जाय॑मानाम् । य आ॑ह॒ना दु॑हि॒तुर्व॒क्षणा॑सु रू॒पा मि॑ना॒नो अकृ॑णोदि॒दं नः॑ ॥ (१३)
महान् एवं उत्तम-शरण देने वाले इंद्र के प्रति मैं बुद्धिमत्तापूर्ण नवरचित स्तुतियों को बोलता हूं. वे वर्षा करने वाले, कन्यारूपी धरती की नदियों को रूप देने वाले एवं हमारे लिए जल का निर्माण करने वाले हैं. (१३)
I speak wisely prophetic praises to the great and best-refuge Indra. They are the rain-doers, the makers of the rivers of the earth in virgos, and they are going to create water for us. (13)