ऋग्वेद (मंडल 5)
अती॑याम नि॒दस्ति॒रः स्व॒स्तिभि॑र्हि॒त्वाव॒द्यमरा॑तीः । वृ॒ष्ट्वी शं योराप॑ उ॒स्रि भे॑ष॒जं स्याम॑ मरुतः स॒ह ॥ (१४)
हे मरुतो! हम कल्याणों द्वारा पाप को त्यागकर निंदक-शत्रुओं पर विजय प्राप्त करें. तुम्हारे द्वारा की गई वर्षा से हम सुख, पापों का नाश, जल, गायां एवं ओषधियों को पावें. (१४)
O Maruto! Let us give up sin through welfare and conquer cynic enemies. With the rain done by you, we should get happiness, destruction of sins, water, songs and medicines. (14)