ऋग्वेद (मंडल 5)
सु॒दे॒वः स॑महासति सु॒वीरो॑ नरो मरुतः॒ स मर्त्यः॑ । यं त्राय॑ध्वे॒ स्याम॒ ते ॥ (१५)
हे पूजित एवं नेता मरुतो! तुम जिस मनुष्य की रक्षा करते हो, वह अन्य देवों का कृपापात्र एवं उत्तम पुत्र-पौत्रों वाला बनता है. हम तुम्हारे सेवक इसी प्रकार बनें. (१५)
O god and leader Maruto! The man you protect becomes the grace of other gods and the best of sons and grandsons. Let us be your servants in this way. (15)