हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 5.54.13

मंडल 5 → सूक्त 54 → श्लोक 13 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 5)

ऋग्वेद: | सूक्त: 54
यु॒ष्माद॑त्तस्य मरुतो विचेतसो रा॒यः स्या॑म र॒थ्यो॒३॒॑ वय॑स्वतः । न यो युच्छ॑ति ति॒ष्यो॒३॒॑ यथा॑ दि॒वो॒३॒॑ऽस्मे रा॑रन्त मरुतः सह॒स्रिण॑म् ॥ (१३)
हे विशिष्ट ज्ञानसंपन्न मरुतो! रथ के स्वामी हम लोग तुम्हारे द्वारा अन्नयुक्त धन प्राप्त करें. वह धन कभी समाप्त नहीं होता, जैसे आकाश से सूर्य कभी लुप्त नहीं होता. हे मरुतो! हमें असीमित धनयुक्त बनाकर सुखी करो. (१३)
O mortal of knowledge! Lord of the chariot, let us receive the wealth that is eaten by you. That wealth never ends, just as the sun never disappears from the sky. O Maruto! Make us happy by making us rich in unlimited. (13)