हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 5.63.6

मंडल 5 → सूक्त 63 → श्लोक 6 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 5)

ऋग्वेद: | सूक्त: 63
वाचं॒ सु मि॑त्रावरुणा॒विरा॑वतीं प॒र्जन्य॑श्चि॒त्रां व॑दति॒ त्विषी॑मतीम् । अ॒भ्रा व॑सत म॒रुतः॒ सु मा॒यया॒ द्यां व॑र्षयतमरु॒णाम॑रे॒पस॑म् ॥ (६)
हे मित्र व वरुण! तुम्हारी कृपा से बादल अन्न का साधक, मनोहर एवं तेजस्वी गर्जन करता है. मरुद्गण अपनी शोभन यात्रा द्वारा बादलों को ढक लेते हैं. तुम मरुद्गण के साथ आकाश से लाल रंग की तथा दोषरहित वर्षा करते हो. (६)
Oh my friend and Varun! By your grace, the seeker of cloud grain, the seeker of the food, the charming and the stunning roar. The deserts cover the clouds with their shobhan yatra. You rain red and faultlessly from the sky with the deserts. (6)