ऋग्वेद (मंडल 5)
व्यु॑च्छा दुहितर्दिवो॒ मा चि॒रं त॑नुथा॒ अपः॑ । नेत्त्वा॑ स्ते॒नं यथा॑ रि॒पुं तपा॑ति॒ सूरो॑ अ॒र्चिषा॒ सुजा॑ते॒ अश्व॑सूनृते ॥ (९)
हे स्वर्गपुत्री उषा! तुम प्रकाश फैलाओ. हमारे यज्ञकर्म में आने में विलंब मत करो. राजा जिस प्रकार अपने शत्रु एवं चोर को दुःखी करता है, उसी प्रकार सूर्य तुम्हें ताप न दे. हे शोभन जन्म वाली उषा! लोग अश्व पाने के लिए तुम्हारी स्तुति करते हैं. (९)
O daughter of heaven Usha! You spread the light. Don't delay in coming to our yajnakarma. Just as the king grieves his enemy and his thief, so let the sun not heat you. O Shobhan born Usha! People praise you for getting the horse. (9)