ऋग्वेद (मंडल 6)
स प्र॑त्न॒वन्नवी॑य॒साग्ने॑ द्यु॒म्नेन॑ सं॒यता॑ । बृ॒हत्त॑तन्थ भा॒नुना॑ ॥ (२१)
हे अग्नि! तुम प्राचीन के समान ही नवीन तेज से युक्त होकर अपनी किरणों द्वारा आकाश का विस्तार करते हो. (२१)
O agni! You expand the sky by your rays with the same new brightness as the ancient. (21)