हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 6.41.5

मंडल 6 → सूक्त 41 → श्लोक 5 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 6)

ऋग्वेद: | सूक्त: 41
ह्वया॑मसि॒ त्वेन्द्र॑ याह्य॒र्वाङरं॑ ते॒ सोम॑स्त॒न्वे॑ भवाति । शत॑क्रतो मा॒दय॑स्वा सु॒तेषु॒ प्रास्माँ अ॑व॒ पृत॑नासु॒ प्र वि॒क्षु ॥ (५)
हे इंद्र! हम तुम्हें बुलाते हैं. तुम हमारे सामने आओ. हमारा यह सोमरस तुम्हारी शरीर वृद्धि के लिए पर्याप्त है. हे शतक्रतु इंद्र! तुम यह निचुड़ा हुआ सोमरस पीकर प्रसन्न बनो एवं युद्धों में सभी ओर से हमारी रक्षा करो. (५)
O Indra! We call you. You come before us. This somras of ours is enough for your body to grow. O Sahartu Indra! Be happy to drink this dull somras and protect us from all sides in wars. (5)