ऋग्वेद (मंडल 6)
इ॒मा उ॑ त्वा शतक्रतो॒ऽभि प्र णो॑नुवु॒र्गिरः॑ । इन्द्र॑ व॒त्सं न मा॒तरः॑ ॥ (२५)
हे सैकड़ों प्रकार के यज्ञ करने वाले इंद्र! जिस प्रकार गाएं बछड़ों के पास बार-बार जाती हैं, उसी प्रकार हमारी स्तुतियां तुम्हारे समीप पहुंचें. (२५)
O Indra who performs hundreds of kinds of yajna! Just as the cows go to the calves again and again, so so our praises come to you. (25)