हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 7.10.1

मंडल 7 → सूक्त 10 → श्लोक 1 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 7)

ऋग्वेद: | सूक्त: 10
उ॒षो न जा॒रः पृ॒थु पाजो॑ अश्रे॒द्दवि॑द्युत॒द्दीद्य॒च्छोशु॑चानः । वृषा॒ हरिः॒ शुचि॒रा भा॑ति भा॒सा धियो॑ हिन्वा॒न उ॑श॒तीर॑जीगः ॥ (१)
अग्नि उषा के प्रेमी सूर्य के समान विस्तृत तेज का आश्रय लेते हैं. अत्यंत दीप्तिशाली, अभिलाषापूरक, हव्य की प्रेरणा देने वाले एवं शुचि अग्नि यज्ञकर्मो को प्रेरित करते हुए अपनी दीप्ति से प्रकाशित करते हैं एवं अपने अभिलाषियों को जागृत करते हैं. (१)
The lovers of Agni Usha take shelter in the widest brightness as the Sun. The most radiant, the desireful, the inspiration of the heart and the pure agni illuminates with their radiance, inspiring the yagnakarmas and awakening their desires. (1)