हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 7.21.6

मंडल 7 → सूक्त 21 → श्लोक 6 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 7)

ऋग्वेद: | सूक्त: 21
अ॒भि क्रत्वे॑न्द्र भू॒रध॒ ज्मन्न ते॑ विव्यङ्महि॒मानं॒ रजां॑सि । स्वेना॒ हि वृ॒त्रं शव॑सा ज॒घन्थ॒ न शत्रु॒रन्तं॑ विविदद्यु॒धा ते॑ ॥ (६)
हे इंद्र! तुम कर्म द्वारा धरती पर वर्तमान प्राणियों को पराजित करते हो. सब लोक मिलकर भी तुम्हारी महिमा से नहीं बढ़ सकते. तुमने अपनी शक्ति से वृत्र को मारा था. युद्ध के द्वारा शत्रु तुम्हारा अंत नहीं पाते. (६)
O Indra! You defeat the present beings on earth by karma. All the people together cannot grow even by your glory. You killed the vritra with your power. Enemies do not end you through war. (6)