हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 7.33.1

मंडल 7 → सूक्त 33 → श्लोक 1 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 7)

ऋग्वेद: | सूक्त: 33
श्वि॒त्यञ्चो॑ मा दक्षिण॒तस्क॑पर्दा धियंजि॒न्वासो॑ अ॒भि हि प्र॑म॒न्दुः । उ॒त्तिष्ठ॑न्वोचे॒ परि॑ ब॒र्हिषो॒ नॄन्न मे॑ दू॒रादवि॑तवे॒ वसि॑ष्ठाः ॥ (१)
गोरे रंग वाले, यज्ञकर्म पूर्ण करने वाले एवं शिर के दक्षिण भाग में चोटी रखने वाले वसिष्ठपुत्र मुझे प्रसन्न करते हैं. मैं यज्ञ से उठता हुआ उनसे कहता हूं कि हे वसिष्ठपुत्रो! मुझसे दूर मत जाओ. (१)
Vasishtaputra, who is white in colour, who completes the yagnakarmas and has a peak in the southern part of the head, pleases me. I get up from the yajna and say to them, 'O Vasishtaputra! Don't go away from me. (1)