ऋग्वेद (मंडल 7)
प्र ब्रह्मै॑तु॒ सद॑नादृ॒तस्य॒ वि र॒श्मिभिः॑ ससृजे॒ सूर्यो॒ गाः । वि सानु॑ना पृथि॒वी स॑स्र उ॒र्वी पृ॒थु प्रती॑क॒मध्येधे॑ अ॒ग्निः ॥ (१)
हमारा स्तोत्र यज्ञशाला से सूर्य आदि देवों के पास भली प्रकार जावें. सूर्य ने अपनी किरणों से वर्षा का जल बनाया है. पृथिवी अपने पर्वतों की चोटियों द्वारा विस्तृतरूप में फैली है. धरती के विस्तृत अंगों के ऊपर अग्नि प्रज्वलित होते हैं. (१)
Let our hymn go well from the yajnashala to the sun etc. devas. The sun has made rain water from its rays. The Earth is extended by the peaks of its mountains. Fires are ignited over the wide limbs of the earth. (1)