हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 7.53.2

मंडल 7 → सूक्त 53 → श्लोक 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 7)

ऋग्वेद: | सूक्त: 53
प्र पू॑र्व॒जे पि॒तरा॒ नव्य॑सीभिर्गी॒र्भिः कृ॑णुध्वं॒ सद॑ने ऋ॒तस्य॑ । आ नो॑ द्यावापृथिवी॒ दैव्ये॑न॒ जने॑न यातं॒ महि॑ वां॒ वरू॑थम् ॥ (२)
हे स्तोताओ! तुम अपनी नवीन स्तुतियों द्वारा पूर्व-उत्पन्न, माता-पितारूप एवं यज्ञ के स्थान द्यावा-पृथिवी को सबसे आगे स्थापित करो. हे द्यावा-पृथिवी! तुम अपना महान्‌ एवं उत्तम धन देने के लिए देवों के साथ हमारे समीप आओ. (२)
This stotao! You, through your new praises, establish the pre-originated, the parenthood and the place of yajna, the dyava-prithvivi at the forefront. This is the earth! Come to us with the gods to give you your great and best wealth. (2)