हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद (मंडल 7)

ऋग्वेद: | सूक्त: 65
प्रति॑ वां॒ सूर॒ उदि॑ते सू॒क्तैर्मि॒त्रं हु॑वे॒ वरु॑णं पू॒तद॑क्षम् । ययो॑रसु॒र्य१॒॑मक्षि॑तं॒ ज्येष्ठं॒ विश्व॑स्य॒ याम॑न्ना॒चिता॑ जिग॒त्नु ॥ (१)
सूर्य निकल आने पर मैं उसे एवं पवित्र शक्ति वाले वरुण को बुलाता हूं. इनका बल क्षीण न होने वाला एवं अधिक है. ये संग्राम में सभी शत्रुओं को जीतते हैं. (१)
When the sun comes out, I call him and the holy-spirited Varuna. Their strength is not diminishing and is high. They conquer all enemies in the war. (1)

ऋग्वेद (मंडल 7)

ऋग्वेद: | सूक्त: 65
ता हि दे॒वाना॒मसु॑रा॒ ताव॒र्या ता नः॑ क्षि॒तीः क॑रतमू॒र्जय॑न्तीः । अ॒श्याम॑ मित्रावरुणा व॒यं वां॒ द्यावा॑ च॒ यत्र॑ पी॒पय॒न्नहा॑ च ॥ (२)
वे दोनों शक्तिशाली एवं श्रेष्ठ देव हमारी प्रजाओं को उन्नत बनावें. हे मित्र व वरुण! हम तुम्हें व्याप्त करें. द्यावा-पृथिवी एवं दिन-रात हमें तृप्त करें. (२)
May those two mighty and superior gods elevate our people. Oh my friend and Varun! Let us permeate you. May the earth and day and night satisfy us. (2)

ऋग्वेद (मंडल 7)

ऋग्वेद: | सूक्त: 65
ता भूरि॑पाशा॒वनृ॑तस्य॒ सेतू॑ दुर॒त्येतू॑ रि॒पवे॒ मर्त्या॑य । ऋ॒तस्य॑ मित्रावरुणा प॒था वा॑म॒पो न ना॒वा दु॑रि॒ता त॑रेम ॥ (३)
वे दोनों विपुल पाशों वाले, यज्ञ न करने वाले के बंधनकर्ता एवं शत्रु मनुष्य के लिए दुरतिक्रमणीय हैं. हे मित्र व वरुण! जिस प्रकार नाव के द्वारा जल को पार करते हैं, उसी प्रकार हम तुम्हारे यज्ञ द्वारा दुःखों से पार हो जावें. (३)
They are both dangerous for man with abundant loops, the bonder of the non-performing of yajna and the enemy. Oh my friend and Varun! Just as we cross the water by boat, let us overcome sufferings by your yajna. (3)

ऋग्वेद (मंडल 7)

ऋग्वेद: | सूक्त: 65
आ नो॑ मित्रावरुणा ह॒व्यजु॑ष्टिं घृ॒तैर्गव्यू॑तिमुक्षत॒मिळा॑भिः । प्रति॑ वा॒मत्र॒ वर॒मा जना॑य पृणी॒तमु॒द्नो दि॒व्यस्य॒ चारोः॑ ॥ (४)
हे मित्र व वरुण! हमारे हव्ययुक्त यज्ञ में आओ एवं जल के साथ-साथ अन्न द्वारा भी हमारी गोचर-भूमि को पूर्ण करो. हमारे अतिरिक्त इस संसार में तुम्हें उत्तम हव्य कौन देगा? तुम अंतरिक्ष में होने वाला एवं उत्तम जल दो. (४)
Oh my friend and Varun! Come to our havanyukta yajna and complete our transit-land by water as well as by food. Who will give you the best thing in this world besides us? Give you the best water in space. (4)

ऋग्वेद (मंडल 7)

ऋग्वेद: | सूक्त: 65
ए॒ष स्तोमो॑ वरुण मित्र॒ तुभ्यं॒ सोमः॑ शु॒क्रो न वा॒यवे॑ऽयामि । अ॒वि॒ष्टं धियो॑ जिगृ॒तं पुरं॑धीर्यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥ (५)
हे मित्र व वरुण! यह स्तोत्र मैंने तुम दोनों एवं वायु के लिए बनाया है. यह सोम के समान दीप्त है. तुम हमारे यज्ञ में आओ, हमारी स्तुति को जानो एवं अपने कल्याणसाधनों द्वारा हमारी सदा रक्षा करो. (५)
Oh my friend and Varun! I've created this hymn for both of you and for the air. It is as bright as Mon. You come to our yajna, know our praise and protect us forever through your means of welfare. (5)