ऋग्वेद (मंडल 7)
आ नो॑ मित्रावरुणा ह॒व्यजु॑ष्टिं घृ॒तैर्गव्यू॑तिमुक्षत॒मिळा॑भिः । प्रति॑ वा॒मत्र॒ वर॒मा जना॑य पृणी॒तमु॒द्नो दि॒व्यस्य॒ चारोः॑ ॥ (४)
हे मित्र व वरुण! हमारे हव्ययुक्त यज्ञ में आओ एवं जल के साथ-साथ अन्न द्वारा भी हमारी गोचर-भूमि को पूर्ण करो. हमारे अतिरिक्त इस संसार में तुम्हें उत्तम हव्य कौन देगा? तुम अंतरिक्ष में होने वाला एवं उत्तम जल दो. (४)
Oh my friend and Varun! Come to our havanyukta yajna and complete our transit-land by water as well as by food. Who will give you the best thing in this world besides us? Give you the best water in space. (4)