ऋग्वेद (मंडल 7)
त्वाम॑ग्ने समिधा॒नो वसि॑ष्ठो॒ जरू॑थं ह॒न्यक्षि॑ रा॒ये पुरं॑धिम् । पु॒रु॒णी॒था जा॑तवेदो जरस्व यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥ (६)
हे अग्नि! वसिष्ठ ऋषि तुम्हें प्रज्वलित करते हैं. तुम राक्षसों की हत्या करो. हे जातवेद! तुम विशाल स्तोत्रं से देवों की स्तुति करो एवं कल्याणसाधनों द्वारा हमारी रक्षा करो. (६)
O agni! Vasishta Sage ignites you. You kill monsters. O Jathaveda! Praise the gods with huge hymns and protect us through means of welfare. (6)