ऋग्वेद (मंडल 8)
यस्य॑ ते अग्ने अ॒न्ये अ॒ग्नय॑ उप॒क्षितो॑ व॒या इ॑व । विपो॒ न द्यु॒म्ना नि यु॑वे॒ जना॑नां॒ तव॑ क्ष॒त्राणि॑ व॒र्धय॑न् ॥ (३३)
हे अग्नि! जिस प्रकार वृक्ष में शाखाएं रहती हैं, उसी प्रकार तुम में गार्हपत्य आदि अन्य अग्नियां समाहित हैं. मनुष्यों के मध्य रहने वाला मैं तुम्हारी शक्तियां अपनी स्तुति द्वारा बढ़ाता हुआ अन्य स्तोताओं के सामने उज्ज्वल यश पाऊंगा. (३३)
O agni! Just as there are branches in the tree, so you contain other agnis like Garhapattya, etc. I, who live among men, will find bright glory in front of other hymns, increasing your powers by my praise. (33)