हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 8.30.2

मंडल 8 → सूक्त 30 → श्लोक 2 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 30
इति॑ स्तु॒तासो॑ असथा रिशादसो॒ ये स्थ त्रय॑श्च त्रिं॒शच्च॑ । मनो॑र्देवा यज्ञियासः ॥ (२)
हे शत्रुनाशक एवं मनु के यज्ञ के पात्र देवो! तुम तेंतीस हो, ऐसा कहकर तुम्हारी स्तुति की जाती है. (२)
O enemey destroyers and deities of Manu's yajna! You are thirty-three, you are praised by saying so. (2)