ऋग्वेद (मंडल 8)
सर्गा॑ँ इव सृजतं सुष्टु॒तीरुप॑ श्या॒वाश्व॑स्य सुन्व॒तो म॑दच्युता । स॒जोष॑सा उ॒षसा॒ सूर्ये॑ण॒ चाश्वि॑ना ति॒रोअ॑ह्न्यम् ॥ (२०)
हे शत्रुओं का गर्व नष्ट करने वाले अश्विनीकुमारो! मुझ सोमरस निचोड़ने वाले श्यावाश्व की शोभन स्तुति को तुम आभरणों के समान समझो. तुम उषा और सूर्य के साथ मिलकर प्रातःकाल सोमरस पिओ. (२०)
O Ashwinikumaro who destroys the pride of enemies! Treat the adornment praise of the shyswho that squeezes me to the somras, like the fillers. You drink somras in the morning together with Usha and Surya. (20)