हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 8.41.3

मंडल 8 → सूक्त 41 → श्लोक 3 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 41
स क्षपः॒ परि॑ षस्वजे॒ न्यु१॒॑स्रो मा॒यया॑ दधे॒ स विश्वं॒ परि॑ दर्श॒तः । तस्य॒ वेनी॒रनु॑ व्र॒तमु॒षस्ति॒स्रो अ॑वर्धय॒न्नभ॑न्तामन्य॒के स॑मे ॥ (३)
वरुण रात्रियों का आलिंगन करते हैं. दर्शनीय वरुण उन्नति करते हुए अपनी माया द्वारा संसार को धारण करते हैं. वरुण के व्रत की कामना करने वाले प्रातः, दोपहर एवं संध्या तीनों कालों के यज्ञ को बढ़ाते हैं. वे सभी शत्रुओं को समाप्त करें. (३)
Varuna embraces the nights. The visible Varuna holds the world through his maya while making progress. Those who wish for Varuna's fast increase the yagna of all the three periods in the morning, afternoon and evening. They eliminate all enemies. (3)