हरि ॐ

ऋग्वेद (Rigved)

ऋग्वेद 8.44.20

मंडल 8 → सूक्त 44 → श्लोक 20 - संस्कृत मंत्र, हिंदी अर्थ और English translation

ऋग्वेद (मंडल 8)

ऋग्वेद: | सूक्त: 44
अद॑ब्धस्य स्व॒धाव॑तो दू॒तस्य॒ रेभ॑तः॒ सदा॑ । अ॒ग्नेः स॒ख्यं वृ॑णीमहे ॥ (२०)
हम हिंसारहित, शक्तिशाली, देवों के दूत एवं देवों की स्तुति करने वाले अग्नि की मित्रता चाहते हैं. (२०)
We want the friendship of violence-free, powerful, angels of gods and agni that praises gods. (20)