ऋग्वेद (मंडल 8)
अद॑ब्धस्य स्व॒धाव॑तो दू॒तस्य॒ रेभ॑तः॒ सदा॑ । अ॒ग्नेः स॒ख्यं वृ॑णीमहे ॥ (२०)
हम हिंसारहित, शक्तिशाली, देवों के दूत एवं देवों की स्तुति करने वाले अग्नि की मित्रता चाहते हैं. (२०)
We want the friendship of violence-free, powerful, angels of gods and agni that praises gods. (20)