ऋग्वेद (मंडल 8)
त्वं नो॑ अग्ने॒ महो॑भिः पा॒हि विश्व॑स्या॒ अरा॑तेः । उ॒त द्वि॒षो मर्त्य॑स्य ॥ (१)
हे अग्नि! तुम महाधन देकर दानरहित लोगों से हमारी रक्षा करो एवं हमें शत्रु लोगों से बचाओ. (१)
O agni! Protect us from the unspoken people by giving us great money and save us from the enemy. (1)
ऋग्वेद (मंडल 8)
न॒हि म॒न्युः पौरु॑षेय॒ ईशे॒ हि वः॑ प्रियजात । त्वमिद॑सि॒ क्षपा॑वान् ॥ (२)
हे प्रिय जन्म वाले अग्नि! पुरुषों का क्रोध तुम्हें बाधा नहीं पहुंचा सकता. तुम ही रात में तेजस्वी हो. (२)
O beloved born agni! The anger of men can't hinder you. You're the only one stunning at night. (2)
ऋग्वेद (मंडल 8)
स नो॒ विश्वे॑भिर्दे॒वेभि॒रूर्जो॑ नपा॒द्भद्र॑शोचे । र॒यिं दे॑हि वि॒श्ववा॑रम् ॥ (३)
हे शक्ति के नाती एवं स्तुति योग्य प्रकाश वाले अग्नि! तुम सब देवों के साथ मिलकर हमें सबके वरण करने योग्य धन दो. (३)
O the grandson of power and the agni of the light of praise! Together with all of you gods, give us all the money worth choosing. (3)
ऋग्वेद (मंडल 8)
न तम॑ग्ने॒ अरा॑तयो॒ मर्तं॑ युवन्त रा॒यः । यं त्राय॑से दा॒श्वांस॑म् ॥ (४)
हे अग्नि! तुम जिस हव्यदाता यजमान का पालन करते हो, उसे धनी एवं दानरहित लोग अपने से अलग नहीं कर सकते. (४)
O agni! The husbandly host you follow cannot be separated from you by the rich and the unsung of charity. (4)
ऋग्वेद (मंडल 8)
यं त्वं वि॑प्र मे॒धसा॑ता॒वग्ने॑ हि॒नोषि॒ धना॑य । स तवो॒ती गोषु॒ गन्ता॑ ॥ (५)
हे अग्नि! जिस हव्यदाता यजमान का तुम यज्ञ में धन देने के लिए प्रेरित करते हो, वह तुम्हारे द्वारा सुरक्षित होकर गायों वाला बनता है. (५)
O agni! The havan-giver host whom you are inspired to give money in the yagna becomes a cow-lover protected by you. (5)
ऋग्वेद (मंडल 8)
त्वं र॒यिं पु॑रु॒वीर॒मग्ने॑ दा॒शुषे॒ मर्ता॑य । प्र णो॑ नय॒ वस्यो॒ अच्छ॑ ॥ (६)
हे अग्नि! तुम हव्य देने वाले मनुष्य को अनेक वीर पुत्रों से युक्त धन देते हो, इसलिए हमें भी निवासस्थान देने योग्य धन दो. (६)
O agni! You give money to the man who gives the havya with many brave sons, so give us the money to be given the dwelling place. (6)
ऋग्वेद (मंडल 8)
उ॒रु॒ष्या णो॒ मा परा॑ दा अघाय॒ते जा॑तवेदः । दु॒रा॒ध्ये॒३॒॑ मर्ता॑य ॥ (७)
हे जातवेद अग्नि! हमारी रक्षा करो. हमें पाप की इच्छा करने वाले एवं हिंसकबुद्धि मनुष्य को मत सौंपो. (७)
O Jativeda Agni! Protect us. Don't give us a man who desires sin and has a violent mind. (7)
ऋग्वेद (मंडल 8)
अग्ने॒ माकि॑ष्टे दे॒वस्य॑ रा॒तिमदे॑वो युयोत । त्वमी॑शिषे॒ वसू॑नाम् ॥ (८)
हे दीप्तिशाली अग्नि! तुम धनों के स्वामी हो. कोई भी देवरहित व्यक्ति तुम्हारे दान को दूर नहीं कर सकता. (८)
O glorious agni! You are the master of wealth. No godless person can take away your charity. (8)